Tuesday, August 10, 2010

चाँद



नींद टूटी चाँद की जो
आँखों भरे आब थे

अँधेरे गहेन में डूबे
चांदनी के ख्वाब थे

ख्वाब देखे ख़्वाबों में ही
ख़्वाबों में वोह चूर था

उस जहाँ में इस जहाँ के
हालों से वोह दूर था

वोह हवा में आंधियों की
असलियत से दूर था

बुलबुलों में बुलबुला था
गोल -गोल दौर था

- संजीव शर्मा