नींद टूटी चाँद की जो
आँखों भरे आब थे
अँधेरे गहेन में डूबे
चांदनी के ख्वाब थे
ख्वाब देखे ख़्वाबों में ही
ख़्वाबों में वोह चूर था
उस जहाँ में इस जहाँ के
हालों से वोह दूर था
वोह हवा में आंधियों की
असलियत से दूर था
बुलबुलों में बुलबुला था
गोल -गोल दौर था
- संजीव शर्मा
No comments:
Post a Comment