Thursday, August 7, 2008

ए अजनबी


हो पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी

ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
तू कहीं तुकडोमे में जीं रही है

ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से

रोज़ रोज़ रेशम सी हवा आते जाते कहती है बता
रेशम सी हवा कहती है बता
वो जो दूध धूलि मासूम कलि
वो है कहाँ कहाँ है
वो रौशनी कहाँ है वो जानसी कहाँ है
मैं अधूरा तू अधूरी जी रहे हैं

पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी
पाखी पाखी परदेसी

ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
तू कहीं तुकडोमे में जीं रही है

तू तो नहीं है लेकिन तेरी मुस्कुराहटें हैं
चेहरा नहीं है पर तेरी आहटें हैं
तू है कहाँ कहाँ है
तेरा निशान कहाँ है
मेरा जहाँ कहाँ है
मैं अधूरा तू अधूरी जी रहे हैं

ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
मैं यहाँ टुकडों में जी रहा हूँ
तू कहीं तुकडोमे में जीं रही है

ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
ए अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से
-- गुलज़ार

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